आँख जो उनसे मिलाना रह गया,
बनते-बनते इक़ फ़साना रह गया.
हम चले आये भले परदेश में ,
आशियाँ अपना विराना रह गया.
गिरजा'घर, गुरुद्वारे, और मंदिर गये ,
अब फ़क़त मस्जिद में जाना रह गया.
हाथ तो मिलते मुसलसल ही रहे ,
बस गले से ही लगाना रह गया.
ज़र, जमीं, मजहब में उलझे यूँ सभी ,
जग ये बन के कत्लखाना रह गया.
साथ उसके भीगना बरसात में ,
याद बचपन का जमाना रह गया.
मर गई इंसानियत शाबान अब
बन के इन्सा वहशियाना रह गया
BY :
Shaban Ali