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Paigaam Shayari


आँख जो उनसे मिलाना रह गया,
बनते-बनते इक़ फ़साना रह गया.

हम चले आये भले परदेश में ,
आशियाँ अपना विराना रह गया.

गिरजा'घर, गुरुद्वारे, और मंदिर गये ,
अब फ़क़त मस्जिद में जाना रह गया.

हाथ तो मिलते मुसलसल ही रहे ,
बस गले से ही लगाना रह गया.

ज़र, जमीं, मजहब में उलझे यूँ सभी ,
जग ये बन के कत्लखाना रह गया.

साथ उसके भीगना बरसात में ,
याद बचपन का जमाना रह गया.

मर गई इंसानियत शाबान अब
बन के इन्सा वहशियाना रह गया

BY : Shaban Ali
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